पौध प्रसारण(Plant Propagation) क्या हैं यह कितने प्रकार का होता हैं?

पौध प्रसारण(Plant Propagation) क्या हैं यह कितने प्रकार का होता हैं?
Plant Propagation


पौध प्रसारण(Plant Propagation) क्या हैं?

फलों तथा फूलों के पौधों की संख्या बढ़ाने के लिए बीज या वानस्पतिक तरीकों का प्रयोग करना ही पौध प्रसारण कहलाता है। 

प्रसारण कितने प्रकार से किया जा सकता हैं?

प्रसारण की मुख्य दो विधियां हैं - 

  1. लैंगिक प्रसारण
  2. वानस्पतिक प्रसारण

लैंगिक प्रसारण क्या है? 

बीज द्वारा तैयार किए गए पौधे बीजू पौधे कहलाते हैं। नर और मादा गैमीट मिलकर भ्रूण का निर्माण करते हैं। इस भ्रूण से नए पौधे का निर्माण होता है।

बीज द्वारा तैयार पौधों से लाभ या लैंगिक प्रसारण के गुण - 

  • यह एक सस्ती एवं सरल विधि है।
  • पौधों को तैयार करने में कम व्यय, कम समय तथा कम परिश्रम लगता है।
  • पौधे अधिक समय तक जीवित रहते हैं अर्थात पौधों का जीवनकाल अधिक होता है।
  • पेड़ों पर फलों की संख्या अधिक मात्रा में आती है।
  • पौधों की वृद्धि एवं विकास अच्छा होता है अर्थात पेड़ों का आकार बड़ा होता है।
  • नई जातियों का निर्माण इसी विधि द्वारा किया जाता है।
  • पौधों में रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है।
  • मूलवृन्त तैयार करने में इनका प्रयोग किया जाता है।
  • कुछ पौधों में वानस्पतिक प्रसारण नहीं हो पाता है, अतः उन्हें बीज द्वारा तैयार करना आवश्यक होता है। जैसे - पपीता, फालसा
  • आम जैसे फल वाले वृक्षों के बीज बहुभ्रूणीय होते हैं, जिससे एक बीज से कई पौधे प्राप्त किए जा सकते हैं।
  • दूरस्थ भागों में प्रसारण में सरलता रहती है।


बीज द्वारा तैयार पौधों से हानि या लैंगिक प्रसारण के दोष - 

  • इन पौधों में फूल एवं फल देरी से आते हैं।
  • इन पौधों के पैतृक गुण बदल जाते हैं।
  • ये पौधे गृह उद्यान के लिए उपयुक्त नहीं रहते हैं।
  • पौधों का आकार बढ़ जाने के कारण उनकी देखभाल करने, कृन्तन, दवाइयां छिड़कने तथा फल तोड़ने में अधिक परेशानी होती है।
  • वृक्षों का पुनर्युवन बीज द्वारा संभव नहीं है।
  • बिना बीज वाले पौधे जैसे - केला, अंगूर, बनानास पौधों का प्रसारण करने में असुविधा होती है।
  • प्रति हेक्टेयर पौधों की संख्या कम होती है क्योंकि बीज वाले पौधे आकार में अधिक फैले तथा ऊंचे होते हैं।


वानस्पतिक प्रसारण क्या हैं?

बीजों के अतिरिक्त पौधों के किसी भी भाग से पौधों का निर्माण करना ही वनस्पति प्रसारण कहलाता है।


वानस्पतिक प्रसारण से लाभ ( Advantages of vegetative Propagation ) -

  • इस विधि द्वारा तैयार किए गए पौधों में पैत‌क वृक्ष के सभी गुण विद्यमान रहते हैं।
  • पौधों में स्वतः ही आए हुए अद्वितीय गुणों को केवल इसी विधि द्वारा ही बनाए रखा जा सकता है।
  • बीज रहित पौधों का प्रसारण इसी विधि द्वारा संभव है।
  • आकार छोटे होने से प्रति हेक्टेयर वृक्षों की संख्या में बढ़ोतरी करके पैदावार प्रति हेक्टेयर बढ़ाई जा सकती है।
  • कृन्तन, फल तोड़ने, दवाइयां छिड़कने आदि में कम व्यय होता है।
  • इस विधि के द्वारा निम्न श्रेणी के वृक्षों को उच्च श्रेणी में परिवर्तित किया जा सकता हैं।
  • वृक्षों में फल फूल जल्दी आने लगते हैं‌
  • विचित्र प्रकार के पौधे इसी विधि द्वारा ही तैयार किए जाते हैं।


वानस्पतिक प्रसारण से हानि ( Disadvantages of vegetative Propagation ) - 

  • इस विधि द्वारा तैयार किए गए पौधों का जीवनकाल कम समय का होता है।
  • इस विधि के द्वारा नई जातियों का निर्माण नहीं किया जा सकता है।
  • यह विधि सभी पौधों में संभव नहीं है। जैसे - पपीता, फालसा आदि
  • इस विधि में खर्चा अधिक होता है।
  • इस विधि में अधिक दक्ष आदमी की आवश्यकता होती है।


बीज प्रवर्धन तथा वानस्पतिक प्रवर्धन में क्या अन्तर है?

  • बीज प्रवर्धन में लैंगिक क्रियाएं होती हैं परन्तु वानस्पतिक प्रवर्धन में नहीं होती हैं।
  • बीज प्रवर्धन वृक्षों में में फल देर से आते हैं परन्तु वानस्पतिक प्रवर्धन में वृक्षों में फूल एवं फल शीघ्र आते हैं।
  • बीज प्रवर्धन मेज पैतृक गुणों में भिन्नता आती है लेकिन वानस्पतिक प्रवर्धन में पैतृक गुणों में भिन्नता नही आती है।
  • बीज प्रवर्धन में एकबीजपत्री तथा दोबीजपत्री पौधों का प्रवर्धन किया जा सकता है। लेकिन इसमें केवल द्विबीजपत्री पौधों का ही प्रवर्धन सम्भव है।
  • बीज प्रवर्धन में वृक्षों का पुनर्युवन नहीं किया जा सकता है। लेकिन वानस्पतिक प्रवर्धन में वृक्षों का पुनर्युवन किया जा सकता है।
  • बीज प्रवर्धन में अर्द्धसूत्री विभाजन होता है। परंतु वानस्पतिक प्रवर्धन में समसूत्री विभाजन होता है। 
  • बीज प्रवर्धन में तकनीकी ज्ञान की कम आवश्यकता होती है। लेकिन वानस्पतिक प्रवर्धन में अपेक्षाकृत अधिक तकनीकी ज्ञान की आवश्यकता होती हैं।
  • बीज प्रवर्धन में परिवहन में सरलता होती है। लेकिन वानस्पतिक प्रवर्धन में परिवहन में कठिनाई अधिक होती है।
  • बीज प्रवर्धन में पौधे तैयार करने में कम लागत तथा कम समय लगता है। लेकिन पौधे तैयार करने में अधिक लागत तथा अधिक समय लगता है।

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