औषधीय पौधों (Medicinal Plants) का परिचय एवं उनका महत्व

औषधीय पौधों (Medicinal Plants) का परिचय एवं उनका महत्व
औषधीय पौधों (Medicinal Plants)


औषधीय पौधों (Medicinal Plants) का परिचय

भारत देश में ऋषियों ने आज से लगभग 7000 वर्ष पूर्व ही पौधों के औषधीय गुणों को पहचान कर चिकित्सीय क्षेत्र में उनका प्रयोग शुरू कर दिया था। चरक संहिता में 1100 एवं सुश्रुत संहिता में 1270 पादपों के औषधीय गुणों का उल्लेख किया गया है।

आयुर्वेद में आज के समय में पर्याप्त मात्रा में पौधों के औषधीय गुणों का उपयोग किया जा रहा है। आज के समय में आयुर्वेद औषधियों का प्रयोग निरंतर बढ़ता जा रहा है।औषधीय पादपों के निरन्तर उपयोग के कारण इनका संरक्षण एवं उत्पादन करना आज के परिवेश में नितांत आवश्यक हो गया है।

देश की गरीब जनता आज भी जड़ी - बूटियों का प्रयोग अत्यधिक मात्रा में इलाज के रूप में करती हैं। मध्यप्रदेश में औषधीय पौधे पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। हजारों एवं लाखों प्रकार के औषधीय पौधे वन एवं पहाड़ी क्षेत्रों में पाए जाते हैं।

औषधीय पादपों को सुरक्षा प्रदान करने हेतु एवं संवर्धन हेतु औषधीय फसलों को पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया गया है। आज के समय में औषधीय फसलों की खेती से किसान अधिक लाभ कमा सकते हैं।

पौधे औषधि के महत्वपूर्ण स्रोत होते हैं।मध्य प्रदेश के जंगलों में सफेद मूसली बहुतायत मात्रा में पाई जाती है। आज के समय में औषधीय पौधों का अत्यधिक महत्व है।

औषधीय के रूप में उपयोग किए जाने वाले पौधों के नाम -

  • नीम
  • आंवला
  • अदरक
  • लहसुन
  • ईसबगोल
  • बच
  • अश्वगंधा
  • हल्दी
  • तुलसी
  • सदाबहार
  • मुनगा
  • दूब घास
  • पीपल
  • अमरूद
  • जामुन
  • इमली
  • हर्रे
  • दालचीनी
  • अनार
  • बबूल

औषधीय पौधों का क्या महत्व होता हैं? | Impotances of Medicinal Plants

पुराने समय में बीमारियों के उपचार का एकमात्र साधन पौधे ही थे।इन पौधों को प्राकृतिक रूप में,अर्क या चूर्ण के रूप में कूट - पीसकर प्रयोग किया जाता था। लेकिन अब आज के समय में औषधीय पौधों पर खोज करके अब इनके क्रियाशील तत्त्वों को पहचान और निकाल कर प्रयोग किया जाने लगा है।

पौधों के अलावा जीव - जंतु तथा अकार्बनिक पदार्थों को प्रयोग मे लाकर शीघ्र और तेज असरदार ऐलोपैथी औषधीय का जन्म हुआ और आज के समय में यही चल रही है।ऐलोपैथिक दवाइयां जहां एक ओर तीव्र असरदार होती है वहीं दूसरी ओर इसके घातक प्रभाव भी दिखाई देते हैं।

कुछ समय पहले एलोपैथिक दवाइयां अमीर तथा शिक्षित लोगों की प्राथमिकता हुआ करती थी।दवाइयां महंगी होने के कारण आम व्यक्ति इसे खरीद नहीं पाता था और मजबूरी में उसे आयुर्वेदिक दवाइयों पर ही निर्भर रहना पड़ता था।

जैसे-जैसे इन दवाइयों का प्रभाव मनुष्यों पर पड़ा और बाद में यह पता चला की एलोपैथिक दवाइयां शरीर पर बहुत बुरा प्रभाव डालती हैं। तो फिर बाद में इन एलोपैथिक दवाइयों का उपयोग करने वाले व्यक्तियों ने आयुर्वेद अर्थात औषधीय दवाइयों को अपनाना प्रारंभ कर दिया।

औषधीय पौधों का प्रयोग भोजन, औषधि, जड़ी - बूटियां स्वाद, रंजक आदि में किया जाता है।किसी भी पौधे का औषधीय महत्व उसमें पाए जाने वाले कुछ विशेष पदार्थ जैसे - ऐल्केलॉयडस, वाष्पशील तेल आदि के कारण होता है।

औषधीय पौधों का उपयोग अनेक रोगों को ठीक करने में किया जाता है जैसे - मिर्गी, पागलपन, मंदबुद्धि, वात, गठियावात, पेट दर्द आदि में किया जाता है। औषधीय पौधे मलेरिया, त्वचा रोग आदि में भी लाभकारी है।

ईसबगोल पौधे की सफेद भूसी पौष्टिक, शीतल और मूत्रल होती है। इसमें रेचक व विबंधक दोनों प्रकार के गुण पाए जाते हैं। कब्ज एवं अतिसार दोनों में इसका प्रयोग किया जाता है। वीर्यपात में भी ईसबगोल उपयोगी है।

मूत्रोत्सर्जन में कठिनाई हो, कम मात्रा में मूत्र आता हो तथा साथ में जलन होती हो तब ईसबगोल की भूसी का सेवन करने से लाभ प्राप्त होता है।दमा के रोगियों को ईसबगोल से लाभ प्राप्त होता है क्योंकि वृहदांत्र पर इसका प्रभाव होता है कब्ज दूर हो जाता है।


औषधीय पौधें एवं उनकी जानकारी 

  • नीम - भारतवर्ष में नीम हजारों वर्षों से औषधीय पौधे के रूप में जाना जाता है। नीम के हर भाग औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता हैं।आधुनिक कीटनाशक रसायनों के उपयोग में आने से पहले किसान अपनी सुरक्षा एवं पोषण हेतु नीम का ही प्रयोग करते थे।नीम द्वारा बने हर पदार्थों में कीड़े - मकोड़े एवं हानिकारक कीटाणुओं को मारने की क्षमता होती है।नीम से तैयार कीटनाशी लगभग 200 प्रकार के ऐसे कीड़ों को नष्ट करता है जो फसलों को विभिन्न प्रकार से हानि पहुंचाते हैं। नीम का हर भाग जैसे पत्तियां, जड़े, तना, निगौरी आदि औषधीय रूप में प्रयोग किए जाते हैं।
  • आंवला - आंवला में विटामिन सी की पर्याप्त मात्रा होती है। डायबिटीज के मरीजों के लिए आंवला अधिक फायदेमंद होता है।डायबिटीज का मरीज यदि आंवले के रस को शहद के साथ प्रतिदिन सेवन करे तो डायबिटीज से राहत मिलेगी। पेट की लगभग सभी समस्याओं के लिए आंवला तरीक फायदेमंद होता है। आंवले का रस पेट की सभी समस्याओं को दूर कर देता है। एसिडिटी के मरीजों के लिए आंवले का फल अत्यधिक फायदेमंद होता है। पथरी के मरीजों के लिए भी आमला फायदेमंद होता है। मोतियाबिंद के मरीजों को आंवले का सेवन करने से फायदा मिलता है।
  • तुलसी - हिंदू धर्म में तुलसी के पौधों की पूजा की जाती है। लेकिन तुलसी के पौधे के धार्मिक महत्व के साथ-साथ औषधीय महत्त्व भी अनेक हैं। तुलसी के पौधे का प्रयोग कई बीमारियों के इलाज में किया जाता है। आयुर्वेद में तुलसी के औषधीय गुणों का विशेष स्थान है। तुलसी के पौधे के हर भाग को इलाज में प्रयोग किया जा सकता है। टीवी के रोग को दूर करने के लिए तुलसी बेहद कारगर साबित हुई है।इसके अलावा तुलसी की पत्तियों को खड़ी काली मिर्च के साथ खाने से मलेरिया तथा टाइफाइड को दूर किया जा सकता है। यौन रोगों में भी तुलसी अत्यधिक फायदेमंद है।पुरुषों में शारीरिक कमजोरी होने पर तुलसी के बीजों का प्रयोग किया जाता है जो काफी फायदेमंद साबित हुआ है।
  • अमरुद - अमरुद के पौधे का औषधि के रूप में अत्यधिक महत्व है। अमरूद के फल का प्रयोग अनेक रोगों को दूर करने में किया जाता है। अमरूद के पत्तों को चबाने या पत्तों के काढ़े में फिटकरी मिलाकर कुल्ला करने से दांतो के दर्द में आराम मिलता है। अमरूद के पत्तों का काढ़ा बनाकर मुंह में चार - पांच मिनट तक रखने से मुख के घाव, रक्तस्राव आदि में आराम मिलता है और दांत स्वस्थ रहते हैं अमरूद के पत्तों का काढ़ा बनाकर पीने से उल्टियां बंद की जा सकती हैं इसके अलावा हृदय रोग में अमरूद काफी फायदेमंद है।
  • नींबू - जुकाम में नींबू का रस लाभदायक होता है। इसके अलावा नींबू से कई रोग दूर किए जाते हैं जैसे - गठिया वात, बुखार, पथरी निकालने, कब्ज आदि में। नींबू के रस को पानी के साथ जीरा, इलायची मिलाकर पीने से उल्टी को दूर किया जा सकता है इसके अलावा साधारण दूध में नींबू निचोड़ कर पीने से पतले दस्त में आराम मिलता है। यदि किसी का गला बैठ जाता है तो गुनगुने पानी में नींबू के रस को नमक के साथ मिलाकर गरारे करने से बैठा हुआ गला ठीक हो जाता है। 
  • सफेद मूसली - इसका उपयोग शक्तिवर्धक औषधि के रूप में किया जाता है। 
  • ईसबगोल - ईसबगोल का उपयोग कब्ज एवं अतिसार दोनों प्रकार के रोगों को ठीक करने में किया जाता है।
  • बच - बच का उपयोग कफ वाली दवाओं में, वायु विकार में, मूत्र विकार में किया जाता है। बच का सूखा चूर्ण का उपयोग कीड़ों को मारने में, दमा आदि में किया जाता है।
  • अश्वगंधा - अश्वगंधा का उपयोग नेत्र विकार में, गठिया, कमर दर्द, कमजोरी, चर्म रोग, फेफड़े की सूजन मूत्र विसर्जन आदि बीमारियों में किया जाता है। 
  • हल्दी - हल्दी का उपयोग पायरिया नाशक, नेत्र रोग, चर्म रोग नाशक, रक्त शोधक, पेट दर्द को ठीक करने, आदि सभी रोगों में एण्टिसेप्टिक के रूप में किया जाता है।
  • अदरक - अदरक का उपयोग कफ, फ्लु, लूज मोशन, फूड पाॅइजनिंग, माइग्रेन के दर्द आदि बीमारियों को ठीक करने में किया जाता है।
  • लहसुन - लहसुन का उपयोग आंख, कान और पेट के रोगों में औषधि के रूप में किया जाता है।


हल्दी के औषधीय महत्व -

  • चोट लगने पर यदि खून अधिक बह रहा हो तो, चोट वाले स्थान पर हल्दी लगा दे, तो खून बहना बंद हो जाएगा।
  • हल्दी का रोज सुबह खाली पेट गुनगुने दूध में सेवन करने से शरीर का दर्द एवं पेट के रोग ठीक हो जाते हैं।
  • हल्दी का लगातार सेवन करने से रक्त साफ होता है।
  • हल्दी का लगातार सेवन करने से रक्त में उपस्थित विषैले तत्व नष्ट होकर बाहर निकल जाती हैं, जिससे रक्त साफ एवं शुद्ध हो जाता है।


अदरक के औषधीय महत्व -

  • सर्दी-जुखाम होने पर अदरक का सेवन करने से सर्दी-जुखाम जल्द ही ठीक हो जाती है।
  • गठिया दर्द एवं शरीर में सूजन होने पर अदरक का सेवन करने से इन लोगों से छुटकारा पा सकते हैं।
  • माइग्रेन के दर्द को ठीक करने में अदरक का विशेष महत्व है।
  • लूज मोशन होने पर अदरक का सेवन करने से लूज मोशन से छुटकारा पा सकते हैं।

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