पौधो के लिए आवश्यक पोषक तत्व कोन कोन से होते हैं | essential nutrients in hindi

पौधो के लिए आवश्यक पोषक तत्व कोन कोन से होते हैं | essential nutrients in hindi
पौधो के लिए आवश्यक पोषक तत्व कोन कोन से होते हैं | essential nutrients in hindi

पौधो के लिए आवश्यक पोषक तत्व कोन कोन से होते हैं?

पौधों का भोजन आवश्यक पोषक तत्वों (essential nutrients in hindi) से युक्त होता है पौधे अपना भोजन मुख्य रूप से हवा, पानी तथा मृदा से प्राप्त करते हैं मृदा से पौधे भोजन के आवश्यक तत्वों को घोल के रूप में ग्रहण करते हैं ।

आवश्यक पोषक तत्व किसे कहते हैं | essential nutrients in hindi

पौधों को अपने पोषण के लिए 17 तत्व की आवश्यकता होती है इन पोषक तत्वों की आपूर्ति के बिना पौधा अपनी वृद्धि एवं विकास अवस्थाओं को पूर्ण नहीं कर सकता इसीलिए इन तत्वों को आवश्यक पोषक तत्व (essential nutrients in hindi ) कहते हैं ।

17 पोषक तत्वों के अतिरिक्त 4 लाभदायक पोषक तत्व भी पौधों पर प्रभाव डालते हैं ।

आवश्यक पोषक तत्वों की कसौटी | criteria of essentiality


वैज्ञानिक आरनोन ने पोषक तत्वों की अनिवार्यता की कसौटी के निम्नलिखित तीन मानदंड दिए हैं -

  • आवश्यक पोषक तत्वों के अभाव में पौधे अपना जीवन चक्र पूरा नहीं कर सकते
  • किसी विशेष आवश्यक पोषक तत्वों की कमी को केवल उसी तत्वों को प्रदान करके दूर किया जा सकता है एक आवश्यक तत्व की कमी दूसरे तत्वों से पूरी नहीं की जा सकती हैं ।
  • आवश्यक तत्व प्रत्यक्ष रूप से पौधे के भोजन या उपापचय क्रिया में भाग लेते हैं ।


पौधों के लिए पोषक तत्वों का वर्गीकरण | classification of plant nutrients in hindi

  • संरचनात्मक पोषक तत्व - कार्बन (C), हाइड्रोजन (H) एवं ऑक्सीजन (O)
  • प्राथमिक पोषक तत्व - नाइट्रोजन (N), फास्फोरस (P) एवं पोटाश (K)
  • द्वितीयक पोषक तत्व - मैग्निशियम (Mg), सल्फर (S) एवं कैलशियम (Ca)
  • सूक्ष्म पोषक तत्व -  मैग्नीज (MN), जिंक (Zn), लोहा (Fe), कॉपर (Cu), बोरान (B), मॉलीब्लेडिनम (Mo), निकिल (Ni) एवं क्लोरीन (Cl)
  • लाभदायक पोषक तत्व - सोडियम (Na), वैनेडियम (V), सिलिकॉन (Si) एवं कोबाल्ट (Co)


पौधों में पोषक तत्वों की भूमिका | role of nutrients in plants in hindi

पौधे का 94 से 96 प्रतिशत भाग कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के द्वारा बनता है इसलिए इन्हें संरचनात्मक पोषक तत्व कहा जाता है तथा 0.5 प्रतिशत से 4-6 प्रतिशत भाग मृदा अवयवों से बनता है । इसके बावजूद, जो पोषक तत्व मृदा से लिये जाते हैं उनकी कमी होने पर पौधे की वृद्धि सीमित हो जाती है । कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन तत्वों को पौधा हवा व जल से प्राप्त करता है ।
बचे हुये शेष 17 पोषक तत्वों को पौधा मृदा व खादों से प्राप्त करता है । भूमि से प्राप्त किये गये पोषक तत्वों नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश, कैल्सियम, मैग्नीशियम और सल्फर (N, P, K, Ca, Mg, S) की पौधों द्वारा अपेक्षाकृत अधिक मात्रा प्रयोग की जाती है । इसलिये इन तत्वों को बहुमात्रिक तत्व (macro - elements) कहते हैं ।
नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश की पौधों को अधिक मात्रा में आवश्यकता होती है, साथ ही विश्व की अधिकांश ये भूमियों में इन तीन तत्वों की कमी पाई जाती है इसलिये इन तीन तत्वों को मुख्य तत्व (major elements) कहते हैं ।
चूँकि तत्व मृदा में खाद और उर्वरकों द्वारा दिये जाते हैं इसलिये इन तत्वों को उर्वरक तत्व (fertilizer elements) भी कहते हैं । कैल्सियम, मैग्नीशियम, सल्फर पौधों को पर्याप्त मात्रा में चाहिये लेकिन इनका कार्य मुख्य पोषक तत्वों (NPK) से कम माना जाता है साथ ही उत्पादक (manufacturers) मुख्य पोषक तत्वों की तुलना में कम महत्व देते हैं तथा नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश की तुलना में इनकी पीधों को कम आवश्यकता होती है । इसलिये इन तत्वों को गीण तत्व (secondary elements) कहते हैं ।
अम्लीय भूमियों में कैल्सियम और मैग्नीशियम चूना पत्थर (lime stone) के रूप में दिये जाते हैं इसलिये कैल्सियम और मैग्नीशियम को चूना तत्व (lime elements) भी कहते हैं ।
शेष 7 तत्वों लोहा, मैंगनीज, जस्ता, बोरॉन, ताँबा, मॉलिब्डीनम, क्लोरीन की पौधों को बहुत ही कम मात्रा में आवश्यकता पड़ती है । इसलिये इन तत्वों को सूक्ष्म मात्रिक तत्व या न्यून तत्व या विरल तत्व (micro or trace or minor elements) कहते हैं । इन तत्वों की आपूर्ति कोई विशेष समस्या नहीं है । कमी होने पर पौधों को इन तत्वों को देना होगा क्योंकि ये भी आवश्यक तत्व हैं । कोबाल्ट, सोडियम, वैनेडियम, सिलिकॉन का लाभदायक प्रभाव पौधों पर पड़ता है परन्तु ये आवश्यक तत्व नहीं हैं क्योंकि सभी फसलों के लिए ये आवश्यक नहीं हैं ।


पोषक तत्वों की आवश्यक दशायें

फसलों की उचित वृद्धि और विकास के लिये पोषक तत्वों की निम्न दशायें आवश्यक हैं—

पोषक तत्व मृदा में उपलब्ध रूप (available form) में उपस्थित होने चाहिये जिससे पौधे उनको ग्रहण कर सकें । नाइट्रोजन का उपलभ्य रूप नाइट्रेट (NO3) और अमोनिकल (NH4) है । फॉस्फोरस का उपलभ्य रूप आर्थोफॉस्फेट आयन्स क्रमशः H_PO4 (मोनो फॉस्फेट रूप), HPO4- (डाई फॉस्फेट रूप) होता है । मोनो फॉस्फेट रूप (फॉस्फोरिक अम्ल) सबसे अधिक उपलब्ध रूप है जबकि डाईफॉस्फेट रूप उससे कम उपलब्ध रूप है । फॉस्फेट का ट्राई फॉस्फेट (PO4) अनुपलब्ध रूप है ।
पोषक तत्वों की मृदा के अन्दर इष्टतम मात्रा (optimum concentration) होनी चाहिये । तत्वों की कमी या अधिकता दोनों ही पौधों की वृद्धि के लिये हानिकारक है ।
सभी पोषक तत्व मृदा विलयन में उचित अनुपात में होने चाहिये । उदाहरण के लिये यदि कैल्सियम की मात्रा अधिक होती है तो वह फॉस्फोरस व बोरॉन के पोषण (nutrition) में बाधा उत्पन्न करती है ।


मृदा में पोषक तत्वों के प्राप्त होने के स्रोत | source of plant nutrients in the soil

  • फसल के अवशेषों से ( By crop residues ) — फसल की पत्तियाँ, तना व जड़ के अवशेष के सड़ने से भूमि को पोषक तत्व प्राप्त होते रहते हैं ।
  • खाद द्वारा ( By manures ) खेत में कार्बनिक व अकार्बनिक खाद देने पर पोषक तत्व मृदा में पहुँचते रहते हैं ।
  • भूमि सुधारकों द्वारा ( By soil amendments ) – जिप्सम, चूना, आदि भूमि सुधारकों द्वारा भी पोषक तत्व भूमि में पहुँचते हैं ।
  • खरपतवारनाशी तथा फफूँदी नाशकों द्वारा ( By Weedicides and Fungicides ) - इन रसायनों के खेत में छिड़कने पर कुछ पोषक तत्व भूमि में पहुँच जाते हैं ।
  • वर्षा द्वारा ( By rains ) — जब वर्षा होती है तो वायुमण्डलीय नाइट्रोजन पानी में घुलकर भूमि में पहुँच जाती है ।
  • दलहनी फसलों द्वारा ( Nitrogen fixation by legumes ) – दलहनी फसलों की जड़ों में छोटी - छोटी ग्रन्थियाँ ( Nodules ) पाई जाती हैं । इनमें उपस्थित राइजोबियम जीवाणु वायुमण्डल से नाइट्रोजन लेकर ग्रन्थियों में स्थापित करते हैं । इसे नाइट्रोजन यौगिकीकरण क्रिया कहते हैं ।
  • एजोटोबैक्टर व क्लॉस्ट्रीडियम असहजीवी जीवाणु भी वायु की नाइट्रोजन का भूमि में यौगिकीकरण करते हैं ।
  • विभिन्न रासायनिक यौगिकों द्वारा सूक्ष्म तत्व भूमि में दिये जाते हैं । जैसे बोरॉन के लिये बोरैक्स, जिंक के लिये जिंक सल्फेट, मैंगनीज के लिये मैंगनीज सल्फेट आदि दिये जाते हैं । कैल्सियम के लिये चूना, जिप्सम, सल्फर के लिये पाइराइट्स या कैल्सियम पोली सल्फाइड, मैग्नीशियम के लिये मैग्नीशियम सल्फेट या डोलोमाइट, लोहे के लिये फैरस सल्फेट आदि दिये जा सकते हैं ।


पौधों द्वारा ग्रहण किये जाने वाले पोषक तत्वों के रूप | forms of elements used by plants


मृदा में उपलब्ध पोषक तत्वों के दो स्रोत हैं—

पोषक तत्व जो कोलाइडी संकीर्ण (colloidal complex) पर अधिशोषित (adsorbed) रहते हैं ।
पोषक तत्वों के लवण जो मृदा विलयन में उपस्थित हैं ।

सभी पोषक तत्व आयन्स के रूप में उपस्थित रहते हैं, जैसे- K+, Ca++, Cl-, SO4- । अधिकांश धनायन्स (cations) कोलाइडी संकीर्ण द्वारा अधिशोषित कर लिये जाते हैं जबकि ऋणात्मक आवेश वाले आयन्स (anions) तथा कुछ मात्रा धनायन्स की मृदा विलयन में रहती है ।

पौधे विभिन्न तत्वों को स्वतन्त्र आयनिक रूप में (एकांकी पोषक तत्व के रूप में) एवं संयुक्त रूप या लवणों के रूप में जड़ों अथवा पत्तियों द्वारा ग्रहण करते हैं ।

1. आयनिक रूप में तत्वों का अवशोषण -

  • पोटैशियम = K+
  • कैल्सियम = Ca++
  • मैग्नीशियम = Mg++
  • आयरन = Fe++ (फैरस) तथा Fe+++ (फैरिक)
  • मैंगनीज = Mn++ (मैंगनस) व Mn+++ (मैंगनिक)
  • कॉपर = Cu+ (क्यूप्रस ) व Cu++ (क्यूप्रिक)
  • जिंक (जस्ता) = Zn++
  • सोडियम = Na+
  • क्लोरीन = CI-

2. संयुक्त रूप या लवणों के रूप में तत्वों का अवशोषण -

  • नाइट्रोजन = NH4+ (अमोनियम) व NO3 (नाइट्रेट)
  • फॉस्फोरस = H2PO4 (मोनोफॉस्फेट) HPO4= (डाईफॉस्फेट)
  • सल्फर = SO4 (सल्फेट), SO3= (सल्फाइट)
  • बोरॉन = BO3= (बोरेट), HB4O7- (बाइबोरेट)
  • मॉलिब्डिनम = MoO4= (मॉलिब्डेट)
  • कार्बन = CO3- (कार्बोनेट), HCO3- (बाईकार्बोनेट)
  • पानी = H+OH-
  • हाइड्रोजन = H+OH-
  • ऑक्सीजन = OH-, CO3-, SO4-, CO2

नोट— अधिकांश पौधे नाइट्रोजन को नाइट्रेट (NO3) के रूप में ग्रहण करते हैं । धान के पौधे नाइट्रोजन को अमोनियम एवं नाइट्रेट दोनों रूप में लेते हैं । ये अमोनियम (NH4) नाइट्रोजन का अधिक उपयोग करते हैं ।


पौधों में मुख्य पोषक तत्वों के कार्य एवं कमी के लक्षण


1. नाइट्रोजन ( Nitrogen ) -

भारत की मृदाओं में नाइट्रोजन (0.03-0.07%) अपेक्षाकृत कम मात्रा में पाई जाती है । फसलों द्वारा प्रतिवर्ष मृदा से शोपित नाइट्रोजन की मात्रा सामान्यतः मृदा में मिलाई जाने वाली मात्रा की अपेक्षा अधिक होती है । वायुमण्डल में लगभग 79% नाइट्रोजन होती है । मृदा में नाइट्रोजन सहजीवी तथा असहजीवी स्थिरीकरण से आती है । मृदा के लिये नाइट्रोजन प्राप्ति का प्रमुख स्रोत कार्बनिक पदार्थ (organic matter) है । मृदा को कुछ नाइट्रोजन वर्षा जल से भी प्राप्त होती है । उर्वरकों द्वारा मृदा को नाइट्रोजन प्राप्त होती है । पौधे नाइट्रोजन को भूमि से नाइट्रेट (NO3-) तथा अमोनियम (NH4+) रूपों में ग्रहण करते हैं ।

नाइट्रोजन के कार्य -

  • नाइट्रोजन प्रोटीन और क्लोरोफिल का आवश्यक अवयव है । इसके अतिरिक्त नाइट्रोजन न्यूक्लिक अम्ल, हार्मोन्स, विटामिन्स, एमाइड्स, एल्केलाइड्स, अमीनो अम्ल तथा प्रोटोप्लाज्म की संरचना में सक्रिय भाग लेता है । यह जीवन का मूल अवयव है ।
  • नाइट्रोजन एडिनोसिनट्राइफॉस्फेट (श्वसन ऊर्जा वाहक) का मुख्य अवयव है । पौधों में ऑक्जिन (
  • auxin) का बनना नाइट्रोजन की मात्रा से उत्प्रेरित होता है ।
  • पौधों में नाइट्रोजन नियन्त्रक का कार्य करती है । इससे फॉस्फोरस व पोटैशियम का विनिमय भी सन्तुलित रहता है । नाइट्रोजन से स्टार्च के जल विश्लेषण में सहायता मिलती है ।
  • पौधों में गहरा हरा रंग प्रदान करती है, क्योंकि क्लोरोफिल का मुख्य अवयव है ।
  • पौधों की शीघ्र व ओजस्वी वानस्पतिक वृद्धि में सहायता करती है तथा कल्ले अधिक निकलते हैं ।
  • पत्तीदार सब्जियों (leafy vegetables) तथा चारे वाली फसलों की गुणवत्ता, रस तथा गूदे को बढ़ाती है ।
  • यह पौधों की फॉस्फोरस, पोटैशियम और कैल्सियम को शोषित करने की क्षमता बढ़ाती है ।
  • नाइट्रोजन को फसल में लगाने पर फसल देर में पकती है ।
  • नाइट्रोजन की अधिक मात्रा देने पर फसल गिर सकती है तथा दाने की अपेक्षा भूसे की मात्रा बढ़ जाती है । रोग व कीटों के आक्रमण की सम्भावना बढ़ जाती है ।
  • दानों तथा चारों में प्रोटीन की मात्रा बढ़ाती है ।

नाइट्रोजन की कमी के लक्षण ( deficiency symptoms of nitrogen in hindi ) -

  • नाइट्रोजन की कमी होने पर पौधों की वृद्धि रुक जाती है । पौधे छोटे रह जाते हैं तथा जड़ों की वृद्धि भी सीमित रह जाती है ।
  • पत्तियाँ पीली पड़ जाती हैं (pale green colour of leaves) । फसल हल्की पीली - हरी दिखाई देती है ।
  • दाने वाली फसलों, जैसे- मक्का, ज्वार, गेहूँ, आदि में नीचे वाली पत्तियाँ पीली पड़ना शुरू होकर बाद में पौधे के ऊपर वाले भागों की भी पत्तियों पीली पड़ने लगती हैं । “पत्ती शीर्ष (top) से पीली पड़कर आगे मध्य सिरा के साथ पीली पड़कर सूखती है और इस प्रकार के आकार का भाग पीला पड़कर सूख जाता है । Firing of old leaves starts from top and moves along midrib, causing a V-shaped yellow area. ) ।
  • कल्ले निकलने वाली फसलों, जैसे - गेहूँ, जौ, धान में नाइट्रोजन की कमी से कल्ले (tillers) बहुत कम निकलते हैं ।
  • अधिक कमी से फूल कम आते हैं और उपज कम हो जाती है । दाने सिकुड़ भी जाते हैं ।


2. फॉस्फोरस ( Phosphorus )

नाइट्रोजन के समान फॉस्फोरस भी पौधों के लिये आवश्यक तत्व है जिसकी हमारे देश की भूमि में प्रायः कमी पाई जाती है । फॉस्फोरस की सबसे बड़ी समस्या उसकी प्राप्यता या उपलब्धता (availability) की है । फॉस्फोरस की सम्पूर्ण मात्रा का केवल 1/3 भाग ही पौधों को उपलब्ध हो पाता है । फॉस्फोरस का अधिकतर भाग अप्राप्य अवस्था में भूमि में विद्यमान रहता है, जो पौधों को तुरन्त लाभ नहीं पहुँचा सकता । भूमि की दशायें फॉस्फोरस की उपलब्धता को कम कर देती हैं । फॉस्फोरस की योगिकीकरण क्रिया (phosphorus fixation) से उपलब्ध फॉस्फोरस, अनुपलब्ध फॉस्फोरस में परिवर्तित हो जाता है जिसका उपयोग पौधे नहीं कर सकते । एक औसत कृषि योग्य मृदा में लगभग 0.1 प्रतिशत कुल फॉस्फोरस होता है । अलीगढ़ की मृदा में 0.13%, कानपुर की मृदा में 0.22%, बनारस की मृदा में 0.09% फॉस्फोरस होता है । पौधे फॉस्फोरस को आर्थोफॉस्फेट आयन्स H2PO4-, HPO4= रूप में ग्रहण करते हैं ।

फॉस्फोरस के कार्य -

  • यह फॉस्फोप्रोटीन, फाइटिन, फॉस्फोलिपाइड्स तथा न्यूक्लिक अम्ल का आवश्यक अवयव है ।
  • ऊर्जा के स्थानान्तरण में फॉस्फोरस महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है तथा वसा और प्रोटीन उपापचय (metabolism) में हाथ वॅटाता है ।
  • फॉस्फोरस ऊतकों के श्वसन में भी सहायक होता है । यह ऑक्सीडेज (oxidase) एन्जाइम्स की क्रियाशीलता को प्रभावित करता है । फॉस्फोरस अधिकांश एन्जाइम का आवश्यक अवयव है ।
  • यह नाइट्रोजन के हानिकारक प्रभावों को कम या उदासीन करता है ।
  • जड़ों की अच्छी वृद्धि करता है । पौधों की शीघ्र व ओजस्वी वृद्धि प्रोत्साहित करता है ।
  • पौधों में फूलों व फलों की संख्या बढ़ जाती है ।
  • इसके प्रयोग से पौधों में फूल शीघ्र आते हैं तथा दानों के निर्माण में सहायता करता है तथा फसलों को शीघ्र पकाता है । फसल को गिरने से रोकता है ।
  • दानों को मोटा तथा चमकीला बनाता है जिससे उपज में वृद्धि होती है ।
  • फॉस्फोरस प्रदान करने वाले उर्वरक लगाने से दाने व भूसे का अनुपात बढ़ जाता है ।
  • दलहनी फसलों की जड़ों में स्थित ग्रन्थियों की संख्या तथा आकार में वृद्धि करता है जिसके फलस्वरूप अधिक वायुमण्डलीय नाइट्रोजन का स्थिरीकरण होता है ।
  • फॉस्फोरस अनाज व अन्य फसलों की गुणवत्ता बढ़ाता है ।
  • कुछ रोगों के प्रति पौधों में प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न करता है तथा पौधों में मजबूती प्रदान करता है । साथ ही सूखा प्रतिरोधी (drought resistance) तथा शीत प्रतिरोधी (winter hardy) शक्ति बढ़ जाती है ।

फॉस्फोरस की कमी के लक्षण -

  • पौधों की जड़ों का विकास बहुत कम होता है ।
  • मन्द वृद्धि तथा फसल देर से पकती है । दलहनी फसल बौनी रह जाती है ।
  • पत्ती का लालिमायुक्त बैंगनी रंग दिखाई देता है (reddish purple colour of young leaves) या पत्तियाँ असामान्य गहरे नीले, हरे रंग की हो जाती हैं ।
  • धान, गेहूँ, ज्वार, आदि फसलों में तना छोटा, पतला, कल्लों की संख्या कम, पत्तियाँ नीली - हरी या हल्की गुलाबी पत्तियों का गिरना, फूलों और फली की संख्या कम होना फॉस्फोरस की कमी के लक्षण हैं ।
  • फूल या फल कम लगते हैं तथा इनका आकार छोटा हो जाता है ।
  • दाने व भूसे का अनुपात कम हो जाता है ।


3. पोटैशियम ( Potassium )

अधिकांश भारतीय भूमियों में पोटैशियम की मात्रा लगभग 2.5 प्रतिशत पाई जाती है । इस प्रकार पोटाश मृदा में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है । औसतन इसकी मात्रा प्रति हैक्टेयर 8,000 से 10,000 किग्रा है लेकिन भूमि में एकत्रित पोटैशियम का अधिकांश भाग पौधों को तुरन्त लाभ पहुँचाने की स्थिति में नहीं होता क्योंकि मृदा का अधिकांश पोटैशियम स्थिर (fixed) रूप में होता है । कुछ सीमित क्षेत्रों में इसकी कमी भी अनुभव की गई है । उत्तर प्रदेश की जलोढ़ मृदाओं में पोटैशियम की मात्रा 0.81 से 1.0 प्रतिशत होती है । बिहार की लैटराइट मृदा में 0.01% K20 तथा कपास की काली मृदाओं में पोटैशियम की मात्रा 0.25-0.35 प्रतिशत होती है । पौधे पोटैशियम को पोटैशियम आयन (K+) के रूप में ग्रहण करते हैं ।

पोटाश का प्रभाव -

  • पोटाश फसल की कीड़ों और बीमारियों से रक्षा करती है । पोटाश जहाँ एक ओर पौधों के भोजन के काम आती है वहीं दूसरी ओर कीड़े और मकोड़ों से फसल की रक्षा करके सहायता करतो है ।
  • फसलों में NPK का सन्तुलित मात्रा में उपयोग करने से उनका समुचित विकास होता है परन्तु नाइट्रोजन के अधिक मात्रा में उपयोग करने से फसलों में पत्तियों का अधिक विकास होता है जिससे कीड़े फसलों की ओर आकर्षित होते हैं और उन्हें नुकसान पहुँचाते हैं ।
  • पौधों में नाइट्रोजन की अधिक मात्रा उपलब्ध होने से नाइट्रोजनधारी यौगिकों का एकत्रीकरण होने लगता है जिससे एस्परेजिन और पेट्रीसिन नामक पदार्थ बनने लगते हैं, इनसे एमाइड और एमीनो एसिड कीड़ों और रोग के जीवाणुओं को आसानी से मिलने लगते हैं जिससे इन्हें शीघ्र पनपने में सहायता मिलती है और पौधे रोग ग्रसित हो जाते हैं । पोटाश की समुचित मात्रा की उपस्थिति में उपर्युक्त पट निर्माण नहीं होता है और इस प्रकार पोटाश बीमारियों से फसल की सुरक्षा में सहायक होती है ।
  • पौधों में समुचित मात्रा में पोटाश की उपस्थिति होने से कीड़ों और बीमारियों के जीवाणुओं द्वारा प्रकोप होने पर पोटाश के धनात्मक आयन होने से उनका (कीड़ों और जीवाणुओं का) आयनिक संतुलन बिगड़ता है जिससे पौधों पर प्रकोप करने से कतराते हैं । इस प्रकार पोटाश के उपयोग से फसल के बचाव में सहायता मिलती है ।
  • पोटाश से पौधों में ऑसमोटिक दबाव कायम रहता है । परिणामस्वरूप प्रकाश संश्लेषण से पत्तियों में निर्मित पदार्थों जैसे स्टार्च और कार्बोहाइड्रेट का सम्पूर्ण पौधों के भागों में संचार होता रहता है और उनका अनावश्यक जमाव नहीं होता है

पोटैशियम के कार्य -

  • पोटाश पौधों के किसी भी अंग के निर्माण में भाग नहीं लेता लेकिन इसकी उपस्थिति में पौधों में ओजस्वी वृद्धि दिखाई देती है । इसीलिये पोटैशियम की पर्याप्त मात्रा पौधों के नये (young) और बढ़ते हुए भागों में उपस्थित होती है जहाँ पर वानस्पतिक क्रिया (vegetative activity) सर्वाधिक होती है । इसकी मात्रा पौधे के पुराने अंगों में सबसे कम पाई जाती है ।
  • पौधों को रोग, शीत तथा प्रतिकूल परिस्थितियों के लिये प्रतिरोधी बनाता है तथा क्लोरोफिल बनने की क्रिया को प्रोत्साहित करता है । प्रोटीन निर्माण में भी सहायक है ।
  • शर्करा (कार्बोहाइड्रेट) तथा स्टार्च के निर्माण और पौधों के अन्दर उनके आवागमन और वितरण में सहायक है ।
  • पोटैशियम का विशेष प्रभाव पत्तियों के विकास पर तथा तने के काष्ठीय भाग के विकास पर पड़ता है । कोशिकाओं के निर्माण तथा विभाजन में सहायक है । यह तने को मजबूती प्रदान करके फसल को गिरने से बचाता है । इसके कारण पौधों में कठोरता आती है ।
  • पौधों में पानी के उपयोग को नियन्त्रित करता है, अर्थात् कोशिकाओं के अन्दर जल की मात्रा तथा वाष्पोत्सर्जन में जल हास को सन्तुलित करता है ।
  • नाइट्रोजन तथा फॉस्फोरस के प्रभाव को सन्तुलित करता है ।
  • अन्न वाली फसलों में दाना, आलू के कन्द तथा जड़ वाली सब्जियों का आकार बढ़ाता है । यह तम्बाकू की पत्तियों की, कपास के धागे की तथा फलों की गुणवत्ता बढ़ाता है ।
  • पोटाश जहाँ एक ओर पौधों के भोजन के काम आती है वहीं दूसरी ओर कीड़े और मकोड़ों से फसल की रक्षा करके सहायता करती है ।
  • पौधों में समुचित मात्रा में पोटाश की उपस्थिति होने से कीड़ों और बीमारियों के जीवाणुओं द्वारा प्रकोप करने पर पोटाश के धनात्मक आयन होने से कीड़ों और जीवाणुओं का आयनिक सन्तुलन बिगड़ता है जिससे वे पौधों पर आक्रमण करने से कतराते हैं । इस प्रकार पोटाश द्वारा फसल बचाव में सहायता मिलती है ।
  • पोटाश से पौधों में ऑसमोटिक दबाव कायम करती है जिससे स्टार्च और कार्बोहाइड्रेट का सम्पूर्ण पौधों के भागों में संचार होता रहता है और उनका आवश्यक जमाव नहीं होता ।

पौधों में पोटैशियम की कमी के लक्षण -

  • पत्तियों के किनारे झुलस जाते हैं तथा झुलसे हुए किनारे भूरे रंग (brown) के होते हैं (brown marginal scorch leaves) ।
  • तने कमजोर होने से पौधों की वृद्धि ठीक प्रकार से नहीं हो पाती । जड़ें सड़ने लगती हैं ।
  • पौधों में बीमारी ज्यादा लगती है । कपास में पत्तियाँ गिरने लगती हैं । डोडे (bolls) छोटे तथा कम खिले हुए होते हैं ।
  • पत्तियों में क्लोरोफिल बनना कम हो जाता है ।

Post a Comment

Previous Post Next Post