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अरहर की फसल में लगने वाले कीट, रोग एवं उनकी रोकथाम के उपाय |
अरहर में लगने वाले प्रमुख रोग -
अरहर की फसल में रोग के लगने से उपज में भारी गिरावट आती है और पौधों को भी अत्यंत हानि होती है। अरहर की फसल में लगने वाले रोग निम्नलिखित हैं -1. उक्ठा रोग ( wilt ) -
यह रोग अत्यंत हानिकारक है। इसमें कई बार फसल को बहुत हानि पहुंचती है। यह रोग ( Fusarium oxysporum ) नामक फफूंदी द्वारा होता है।उक्ठा रोग (wilt) के लक्षण -
इस रोग के प्रभाव से पौधे की जड़ें काली पड़ जाती हैं और शाखाएं गल जाती है। इस रोग के प्रभाव के कारण पौधे के ऊपरी भागों में पानी का परिभ्रमण रुक जाता है और पौधे की ऊपरी पत्तियां पीली पडकर जमीन पर नीचे गिर जाती है। पौधों की टहनियां भी सूख जाती हैं।रोकथाम के उपाय -
यह भूमि द्वारा पनपने वाला रोग है। अतः ऐसे तीनवर्षीय फसल चक्र उपयोग में लाने चाहिए कि जिस खेत में पहले वर्ष उक्ठा रोक लग गया हो, उस खेत में कई वर्षों तक अरहर नहीं लगाना चाहिए। इसके अलावा कुछ रोगरोधी किस्में मुक्ता आदि को लगाना चाहिए। खेतों में जल निकास का उचित प्रबंधन करना चाहिए।2. पत्तियों के चकते या धब्बा ( Leaf spots ) -
यह रोग भी एक फफूंद द्वारा ही लगता है। इस रोग में पत्तियों पर पीले या काले गोल धब्बे या चकते दिखाई देते हैं, पत्तियां मुड़ जाती हैं और गिरने लगती है।रोकथाम के उपाय -
रोगी पत्तियों को तोड़कर जला देना चाहिए। फसलों के हेर - फेर से भी रोग की क्षति को कम किया जा सकता है। बोर्डो मिश्रण या जिनेब के 0.25 प्रतिशत घोल का छिड़काव दो - तीन बार फसल पर करना चाहिए।3. तना विगलन ( Stem rot ) -
यह रोग भी ( Phytophthora dreschslevi ) नामक फफूंद द्वारा लगता है। पूरा पौधा इस रोग में सूख जाता है। इस रोग की रोकथाम के लिए रोगरोधी किस्में बोनी चाहिए। खेतों में समय - समय पर उचित फसल चक्र भी अपनाना चाहिए।4. बन्ध्यता मोजैक ( Sterility mosaic ) -
यह एक वायरस से फैलने वाला रोग है, जिसका प्रकोप फसल पर आजकल बहुत ज्यादा बढ़ रहा है। पौधे पर पत्तियां अधिक लगती है, पत्तियों का रंग हल्का हरा पीला होता है। रोगी पौधों पर फूल वा फलियां नहीं बनते हैं। पौधे की कुछ शाखाएं भी इस रोग से प्रभावित हो सकती हैं।माइट ( अष्टपदी ) कीट इस रोग को फैलाता है। इस रोग से फसल को बचाने के लिए खेत से, पहले वर्ष के पौधे या स्वयं रोगी पौधों को खेत से उखाड़कर जला देना चाहिए। प्रभावित पौधों को भी उखाड़कर नष्ट कर देना चाहिए।
अरहर में लगने वाले प्रमुख कीट
फसलों में लगने वाले कीट फसलों को अत्यंत हानि पहुंचाते हैं। अरहर की फसल में लगने वाले कीट और उनकी रोकथाम में निम्नलिखित है -1. तूर प्लूम मौथ ( Plume moth ) -
इस कीट का कैटरपिलर हरे रंग का होता है। शरीर पर बालों के गुच्छे पाए जाते हैं। यह कीट ठण्डे मौसम में अधिक दिखाई देते हैं। ये गिडार 10-15 मिमी. लम्बे होते हैं। खड़ी फसल में 0.15% इण्डोसल्फान ( थायोडान ) 35 ई. सी. का 1000 ली. घोल प्रति हेक्टेयर छिड़कना चाहिए। इसकी रोकथाम के लिए 10% बी.एच.सी. की धूल 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से डालनी चाहिए। इसके अलावा एल्ड्रिन की धूलि भी लाभकारी रहती है।2. फली बेधक ( pod borer ) -
यह कीट फली के अंदर बनने वाले बीजों को खाता है और कैटरपिलर की लंबाई 20 से 25 मिमी होती है। यह कीट रंग में कुछ हरियाली लिए हुए काले-पीले रंग का होता है। इस कीट की रोकथाम के लिए उपरोक्त मिश्रण के अतिरिक्त 1.50 लीटर थायोडान ( इण्डोसल्फान 35 ई.सी. ) का 800 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना चाहिए। दूसरा छिड़काव आवश्यकता पड़ने पर 15 दिन के बाद करना चाहिए।3. फली बेधक मक्खी ( pod ply ) -
इस मक्खी का लारवा मुख्य रूप से हानिकारक होता है और फलियों में बढ़ते हुए दानों को खाते हैं। इसकी रोकथाम के लिए इण्डोसल्फान ( 35 ई.सी. ) 0.15 प्रतिशत के घोल को 800 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 10 से 15 दिन के अंतर से फल आने तक छिडकते रहना चाहिए।4. बीटिल ( Pulse beetle ) -
यह साधारणतः ढोरे के नाम से जाना जाता है और यह भण्डार में दानों को खा जाता है। इस कीट की रोकथाम के लिए मेलाथियान धूलि 25% या डी.डी.टी. 10% धूलि 175 ग्राम प्रति क्विंटल भंडार की गई अरहर में डालनी चाहिए। इसके अतिरिक्त फोस्टोक्सीन कि 3-5 गोलियां प्रति क्विंटल अरहर के भंडारित बीजों में रखनी चाहिए।5. पत्ती लपेटने वाला कीट -
यह कीट पौधों की पत्तियों को लपेटकर पत्तियों को घुमावदार बनाकर अन्दर से खा जाता है। पत्ती लपेटने वाला कीट सितंबर माह में आक्रमण कर सकता है। इस कीट की रोकथाम के लिए 1.5 ली. इण्डोसल्फान ( 35 ई.सी. ) को 1000 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर से छिड़काव करना चाहिए।
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